पूरी दुनिया कोरोनावायरस का इलाज ढूंढ़ने में लगी हुई है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि जब तक हमें वैक्सीन नहीं मिलती है तब तक प्लाज़्मा थेरेपी कोरोनावायरस के रोगियों का इलाज करने के लिए संभावित तरीका हो सकता है। भारत के कुछ राज्यों ने प्लाज़्मा थेरेपी का इस्तमाल करना शुरू कर दिया है जबकि कुछ राज्य अभी भी ICMR की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रहे है। इस बीच अमेरिका में कोरोनावायरस से ठीक हो चुके 6000 लोगों ने अपना प्ल्ज़्मा दान किया है।
इस बीच सभी के मन में एक सवाल आ रहा है – क्या प्लाज़्मा थेरेपी कोरोनावायरस के रोगियों का इलाज करने के सक्षम है? आइए, देखते है।
कँवलेसेन्ट प्लाज़्मा थेरेपी क्या है और कैसे काम करती है?
प्लाज़्मा रक्त का तरल हिस्सा होता है और रक्त में लगभग 55% यही होता है। बचा हुआ 45% रेड ब्लड सेल्स, वाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स होते है। 91-92% प्लाज़्मा पानी होता है और यह हलके पीले रंग का होता है।
जब आपका शरीर रोगाणुओं के संपर्क में आता है तो वह एंटीबॉडी बनाता है जो रोगाणुओं से लड़ कर आपको सुरक्षित रखने में मदद करती है। यह एंटीबॉडी प्लाज़्मा में होती है। जब आप किसी बीमारी से ठीक होते है तो यह एंटीबॉडी आपके प्लाज़्मा में कुछ समय तक रहती है ताकि अगर वह रोगाणु फिर से वापिस आए तो आपका शरीर उनसे लड़ने के लिए तैयार रहे। ध्यान दे की हर बीमारी के लिए अलग तरह की एंटीबॉडी होती है।
तो डॉक्टर यहाँ कोरोनावायरस से ठीक हो चुके मरीज़ का प्लाज़्मा निकाल कर कोरोनावायरस से जूझ रहे मरीज़ के शरीर में डाल रहे है। ऐसा इस उम्मीद से किया जा रहा की यह प्लाज़्मा मरीज़ की इम्युनिटी बढ़ाएगा और उन्हें जल्द से जल्द ठीक होने में मदद करेगा। क्योंकि यहाँ इम्युनिटी उधार में ली गयी है इसलिए इसे पैसिव इम्युनिटी कहा जाता है।
क्या प्लाज़्मा थेरेपी से पहले फाएदा हुआ है?
इतिहास में हमने जब भी कोई नई बीमारी देखि, मरीज़ो का इलाज करने के लिए कँवलेसेन्ट प्लाज़्मा थेरेपी का उपयोग किया गया। 1981 में स्पेनिश फ्लू, 2003 में SARS महामारी, 2009 में H1N1 वायरस और 2014 में इबोला – इन सभी बीमारियों के प्रकोप से मरीज़ो को बचाने के लिए प्लाज़्मा थेरेपी का उपयोग किया गया था। रेबीज़, हेपेटाइटिस, पोलियो, मीसल्स और इन्फ्लुएंजा के उपचार में भी प्लाज़्मा थेरपाय कारगर साबित हुई थी। लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं के आविष्कार के साथ प्लाज़्मा थेरेपी का उपयोग तेज़ी से कम हो गया।
COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग करने के बारे में शोधकर्ताओं का क्या कहना है?
अभी किसी तरह के कोई दावे नहीं किए जा सकते है। डॉक्टर अभी भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे है की कोरोनावायरस रोगियों के उपचार में प्लाज़्मा थेरेपी मदद करेगा या नहीं। कुछ मरीज़ो की हालत में थेरेपी के बाद सुधर देखा गया है जबकि कुछ मरीज़ो को थेरेपी का कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
कौन अपने प्लाज्मा दान कर सकता है?
प्लाज़्मा दान करने की प्रक्रिया रक्तदान करने के समान है। यह लोग अपने प्लाज़्मा दान कर सकते है:
- सामान्य रक्तदान की शर्ते पूरी होनी चाहिए।
- अतीत में कोरोनावायरस बीमारी की टेस्ट के द्वारा पहचान हुई हो।
- कम से कम 14 दिनों से कोरोनावायरस के कोई लक्षण नहीं होने चाहिए और कोरोनावायरस टेस्ट नेगेटिव होना चाहिए।
क्या प्लाज्मा थेरेपी में कोई जोखिम शामिल हैं?
प्लाज्मा थेरेपी के संभावित जोखिम हो सकते हैं:
- प्लाज्मा की अनुचित स्क्रीनिंग की वजह से संक्रमण का खतरा।
- रक्त आधान के साथ जुड़े जोखिम।
- प्रतिरक्षा-मध्यस्थता क्षति का बिगड़ना।
कोरोनोवायरस बीमारी के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावशीलता दिखाने के लिए कोई निश्चित अध्ययन मौजूद नहीं है। यह पहली बार होगा कि चिकित्सा और वैज्ञानिक समुदाय प्लाज्मा थेरेपी की प्रभावशीलता का निर्धारण करने के लिए इस प्रकार के कठोर अध्ययन करेंगे।
(इस आर्टिकल को इंग्लिश में पढ़ें)
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